"चक्का जाम" : संस्मरण - By Rahul Keshav Rajput

बड़े दिनों बाद बड़े ही उत्साह के साथ हमने अपनी दीवाली की छुट्टियाँ बितायी। बस चिंता ये ही थी कि कल सुबह फिर मम्मी-पापा और परिवार को छोड़कर 2000 किलोमीटर दूर उड़ीसा अपनी प्राइवेट नौकरी जॉइन करने जाना था। पहले ही छुट्टियाँ मिलने में बहुत परेशानी हो रही थी। मैनेजर भी चार बार फोन कर चुका था। बड़ी मुश्किल से रात बिताई। माँ की आंखों में उदासी और नमी सुबह से ही नजर आ रही थी।

शाम को 5 बजे नई दिल्ली से ट्रेन थी, इसलिए हमने समय से ही घर से निकलने का फैसला किया। सुबह के 9 बजे मैं, मेरी पत्नी और मेरा 2 साल का बेटा दिल्ली की बस पकड़ने के लिए निकले। बसों में बहुत भीड़ थी और कोई भी बस रुक भी नही रही थी। माँ ने घर से मेरे मना करने के बाद भी बहुत सारा सामान मिठाई, चावल आदि बैग में भरकर दे दिए। समान काफी था, बस रुक नही रही थी, ट्रेन छूटने की चिंता सता रही थी क्योंकि छट पूजा के कारण आने वाले दो-तीन दिन तक टिकट की वेटिंग चल रही थीं। लगभग एक-डेढ़ घंटे के इंतजार के बाद एक बस में एक सीट मिली। हम जैसे-तैसे बस में चढ़े। सामान एडजस्ट करने में भी बहुत परेशानी हो रही थी। खैर बिजनौर में दो-तीन सीट खाली हुई और हम सीट पर बैठ गए। मेरे बाजू वाली सीट पर एक बुजुर्ग बैठे थे, जो कोटद्वार से आ रहे थे और बहुत उदास लग रहे थे। बात करने पर पता लगा कि उनका एक ही बेटा है, जो दिल्ली में जॉब करता है। उनके बेटे को डेंगू बुखार हो गया था जो एक निजी अस्पताल में भर्ती था। उनके अनुसार उसकी हालत काफी नाजुक बनी हुई थी। उन बुजुर्ग का मानो एक-एक पल एक साल के जैसा बीत रहा था। मैंने सहानुभूति दिखाते हुए उन्हें सान्त्वना देने की कोशिश की। बस चली, मीरापुर तक का सफर तय हुआ। मीरापुर से निकलते ही एक राजनैतिक दल ने सरकार की किसी नीति के विरोध में चक्का जाम लगा रक्खा था। बदकिस्मती से हमारी बस के एक तरफ गहरा खेत और दूसरी तरफ एक ट्रक था जो ओवरलोडेड था। पीछे भी कुछ गाड़ियाँ लग गई। अभी तक हमें कुछ भी पता नही था कि जाम क्यों लगा हुआ था। आगे वाली गाड़ियों की सवारियों से कारण पता लगा। बहुत चिंता हो रही थी कि ट्रेन मिलेगी भी के नहीं। साथ वाले अंकल की हालत देख कर और भी तरस आ रहा था। बस में और भी ऐसी बहुत सी सवारियाँ थी, जो काफी परेशान थीं। कुछ छोटे बच्चे, कुछ बुजुर्ग। करीब 2 घंटे बाद जाम खुला। बस ड्राइवर ने के काफी फुर्ती दिखाई, लेकिन मेरठ, गाजियाबाद के जाम ने फिर से रफ्तार धीमी कर दी। अब तो ट्रेन निकलने की चिंता बहुत सताने लगी। सामान भी काफी था, देर भी काफी ज्यादा हो रही थी। जैसे तैसे 4ः20 तक आईएसबीटी पहुँच पाए। आनन-फानन में ऑटो लिया, स्टेशन पहुँचे। देखा तो वहाँ भी लंबी लाइन लगी थी। सामान चैक कराने के लिए जल्दी से कुली किया। कुली ने तुरंत लाइन के बीच में घुँसकर सामान चैक कराया। हम भी जल्दी से प्लेटफॉर्म की और दौड़े। बच्चे के साथ दौड़ भी नहीं पा रहे थे और भीड़ भी थी। हम जैसे-तैसे प्लेटफॉर्म पर पहुँचे, देखा तो सामने ट्रेन थी जो अब चल चुकी थी। रफ्तार बढ़ती जा रही थी। मेरी साँसे फूल रही थीं। हम बस ट्रेन को जाते देखते रह गए।

बहुत गुस्सा आया। पर अब क्या कर सकते थे? खैर हम कुछ देर वहीं एक कुर्सी पर बैठे, पानी पिया। सोचा कि अगर जाम 15 मिनट पहले खुल गया होता तो हम ट्रेन पकड़ पाते। वहाँ से हम एक टैक्सी ले कर गुडगाँव अपनी दीदी के घर चले गए। चार दिन बाद ट्रेन का टिकट मिला। ड्यूटी जॉइन की तो मैनेजर ने खूब सुनाई और साथ ही 4 दिन की गैरहाजिरी भी लगाई। 

काश के कोई हमारी भी सुन पाता। ऐसे ना जाने कितने लोग हर बार परेशानी में पड़ जाते हैं इन चक्का जाम के कारण। चक्का जाम कभी भी किसी समस्या का समाधान नहीं है। ना ही हो सकता है। सरकार या बड़े लोगों को कोई फर्क नहीं पड़ता, फर्क पड़ता है सामान्य जनता को। कृपया इस तरह के कार्यक्रम से बचें। देश हमारा है। चक्का जाम, बन्द आदि से देश की हानि होती है, आम जनता की हानि होती है। किसी के दिल को अगर ठेस पहुँची हो तो क्षमा करना।


- राहुल केशव राजपूत

1 टिप्पणियाँ

बहुमूल्य टिप्पणी के लिए आपका आभार 🙏🏻

  1. राहुल केशव भाई जी, आपने आप बीती बहुत ही सुंदर तरीके से दर्शायी है। आपका दर्द जायज़ है और आपके द्वारा दिया गया संदेश भी बहुत बढ़िया।

    जवाब देंहटाएं
और नया पुराने