सच्ची पूर्व दिशा और 21 जून का महत्व - BY हेमन्त कुमार

उत्तर भारत में जिस तरफ हम उँगली करके कहते हैं कि यह पूर्व है वह वास्तविक पूर्व दिशा नहीं होती। दरअसल पूर्व दिशा ज्ञात करने के लिए हम उगते हुए सूरज को मानक मानते हैं। परंतु उत्तर भारत में सूरज पूर्व दिशा से दक्षिण की ओर हट कर उगता है। अब प्रश्न उठता है कि सच्ची पूर्व दिशा का कैसे पता चले। इसके लिए 21 जून का इंतजार करना पड़ता है और जाना पड़ता है कर्क रेखा पर। कर्क रेखा उत्तर भारत के सबसे नजदीक का वह बिंदुपथ है जहाँ 21 जून को सूर्य की किरणें धरती पर एकदम लंबवत पड़ती हैं। इस दिन कर्क रेखा पर सूर्य ठीक पूर्व में उगता है और ठीक पश्चिम में अस्त हो जाता है।  उज्जैन नगर कर्क रेखा पर ही बसा है और इसी वजह से प्राचीन भारत की खगोलीय गणनाओं का अनुसंधान स्थल रहा। महान भारतीय खगोलविद आर्यभट्ट ने उज्जैन में 21 जून के तत्सम्मत दिन पृथिवी के व्यास की गणना की थी। यह कैसे पता चला कि कर्क रेखा पर 21 जून को सूर्य की किरणें सीधी/लंबवत पड़ती हैं? यह ज्ञात हुआ गहरे कुँए से। कुआँ कितना ही गहरा क्यों न हो  कर्क रेखा पर बने कुँए में 21 जून की दोपहर को तली तक धूप पहुँच जाती है वह भी पूरी तली में। पूरी तली में कुछ समय के लिए ही धूप पहुँचती है और ये कुछ पल दिन का मध्यान्ह कहलाता है।

कर्क रेखा पर पूर्व दिशा की सच्ची स्थिति ज्ञात करने के लिये 21 जून को दूर तक खुले और थोड़ा ऊँचे स्थान पर सूर्योदय से पहले एक शंकु रख दिया जाता है। शंकु को लकड़ी के फट्टे, कागज, स्लेट या कपड़े के ऊपर पर रखा जाता है। शंकु को जिस चीज पर रखा जाता है वह समतल तथा स्थिर भी होनी चाहिये। फिर शंकु की परछाई बनने का इंतजार किया जाता है। परछाई के बनते ही इसका उस चीज पर  अंकन कर लिया जाता है जिस पर शंकु रखा हो। परछाई में शंकु के शीर्ष  से शुरू होकर शंकु के आधार के मध्य बिंदु से होकर जाने वाली रेखा के ठीक सामने पूर्व दिशा होती है। पूर्व की ओर मुँह करके खड़े हो जाएँ तो दाहिनी तरफ 90 अंश पर दक्षिण दिशा और बायीं तरफ 90 अंश पर उत्तर दिशा होगी। उत्तर दिशा ज्ञात करने के दो तरीके और हैं। पहला मैग्नेटिक कंपास द्वारा,  इससे प्राप्त उत्तर दिशा भौगोलिक उत्तर से थोड़ा हट कर होती है। दूसरा ध्रुव तारे द्वारा, परंतु ध्रुव तारे द्वारा दक्षिणी गोलार्द्ध में उत्तर ज्ञात करना संभव नहीं होता। इन सभी तरीकों में मैग्नेटिक कंपास से दिशा ज्ञात करना अधिक सरल होता है।

यदि हम कर्क रेखा पर न होकर इसके उत्तर में कहीं हैं तो पूरब दिशा की सच्ची स्थिति ज्ञात करना अत्यन्त कठिन होता है। यदि 21 जून को कर्क रेखा पर सूर्योदय और सूर्यास्त के बीच एक रेखा XY खींच दी जाय। और इस रेखा पर पूरब को 0 डिग्री, दक्षिण को 90 डिग्री और पश्चिम को 180 डिग्री कहा जाय तो 21 जून के दिन सूरज बिजनौर शहर में लगभग 5.5 डिग्री पर निकलेगा है और 175.5 डिग्री पर अस्त हो जायेगा। कर्क रेखा पर स्थित उज्जैन शहर में 0 डिग्री पर निकलेगा और 180 डिग्री पर अस्त हो जाएगा।

21 जून को सबसे बड़ा दिन होता है तो 21 दिसम्बर को सबसे छोटा। इस दिन बिजनौर शहर में सूरज लगभग 52.5 डिग्री पर निकलेगा और लगभग 128.5 डिग्री पर छिप जाएगा। सूरज 21 दिसम्बर को कर्क रेखा पर स्थित उज्जैन शहर में 47 डिग्री पर निकलेगा और 133 डिग्री पर छिप जाएगा।  सूरज 364 दिनों तक हर दिन नयी जगह से उदय होता है। आज सूरज जिस जगह से उगा ठीक उसी जगह से 365 दिन बाद उगेगा। हम आसमान में जितना ऊपर जाते हैं क्षितिज उतना ही दूर होता जाता है। इस कारण दृश्यावली बढ़ जाती है। पर्वत की चोटियों और विस्तृत एवं खुले मैदानों में बने शंकुनुमा अनेक मंदिर दिशा अनुसंधान का भी प्रायोजन पूर्ण करते थे।


हेमन्त कुमार

ग्राम फीना, बिजनौर
सहायक अभियंता सिंचाई एवं जल संसाधन विभाग, उत्तर प्रदेश।


------------------------------------------------------------
क्रमश: ...

यह लेख बिजनौर का इतिहास नामक प्रस्तावित पुस्तक का अंश है।
लेख संख्या-43 अध्याय: एक। सामान्य परिचय उप विषय-भौगोलिक स्थिति और जलवायु। © लेखक- हेमंत कुमार ग्राम फीना, बिजनौर। यदि आपके पास कोई ऐसी उच्च महत्व की या ऐतिहासिक जानकारी है जो बिजनौर के इतिहास में शामिल करने योग्य हो, अथवा इस लेख में कोई त्रुटि हो तो इस ईमेल पर सूचित करें - hemant1777@gmail.com
-----------------------------------------------------------

एक टिप्पणी भेजें

बहुमूल्य टिप्पणी के लिए आपका आभार 🙏🏻

और नया पुराने